धरती से अंबर तक गूँजा
उसका बादल राग।
शरद, शीत, फागुन, पावस के
संवेदनयुत गीत
खरी बैखरी वाणी का वह
अनहद-सा संगीत
उस वसंत के अग्रदूत का
जीवन रचता फाग।
दीर्घबाहु राजीव-नयन वह
दिप-दिप करता भाल
सरस्वती-सुत-सूर्यकांत-शर
भेदें घन-तम-जाल
अंबर में धूनी रमता वह
पानी ऊपर आग।
नव पर नव रामायण रचता
अभिनव तुलसीदास
था दरिद्रनारायण के हित
भारत ‘रत’ वह व्यास
‘सांध्यकाकली’ में अनुरंजित
ऊषा का अनुराग।
लाख नरक जीकर, सह-सह कर
दुखों का संघात
जन-गण-मन उद्घोष बना वह
दहा, रहा अभिजात
छंद-छंद पर कुंकुम छिटका
झरता राग-पराग।